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प्रजातंत्र बनाम नक्सलवाद

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चुनाव आयोग की कैसी रणनीति कितनी अजीब बात है चुनाव का पहला चरण शुरू हुआ और शुरूआत नक्सली हमले से।ज्यादा मुश्किल स्थिति नहीं है समझने की क्या कारण हैं, इन नक्सली हमलों के।दरअसल,चुनाव आयोग ने नक्सल प्रभावित जगहों को एक ही दिन में निपटाने की जुगत लगाई। इस रणनीति को समझना काफी मुश्किल है लेकिन इतना आप समझ सकते हैं ये नीति कितनी बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई। जिसने ये नीति बनाई क्या वाकई इनकी सोच यहां तक नहीं पहुंच सकी कि सुरक्षा बल को भी हर जगह के लिए बंटना होगा जिससे सुरक्षा बल कमजोर पड़ेंगे।जबकि हमारे सुरक्षा बलों की संख्या 70 -80 होती है जबकि नक्सलियों की संख्या 200-300 तक होती है। उड़ीसा के नाल्को खदान पर अटैक इसका ताजा उदाहरण है। तो फिर गर्व कैसा ? इन नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में 70-80 सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती कम से कम 100-200 नक्सलियों से संघर्ष तो करना था ही आम मतदाताओं में ये विश्वास बहाली का काम भी उनपर छोड़ा गया कि लोग पोलिंग बुथ तक आएं और वोट कर खुद को गौरवान्वित महसूस करें ।इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आम लोगों की तो छोड़िए थाने में सिपाही तक शायद ही आपक