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लालू यादव ने गांधी मैदान में कैसे जुटाई भीड़ ?

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# दो बातें आपको बता दूं आगे कुछ गालियों का प्रयोग है तो आपका 18 साल होना मेरे लिए नहीं आपके लिए जरुरी है और दूसरा मैंने अपने घर की भाषा का प्रयोग किया है तो उससे ये न समझियेगा कि ब्लॉगर की हिंदी कमजोर है ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैं कॉन्वेंट में नहीं पढ़ा। पटना का गांधी मैदान यूं तो लालू जी से भली भांति परिचित रहा है पंद्रह साल तक जिस आनन्द के साथ उन्होंने बिहार पर शासन (या रौंदा-ज्यादातर लोग यही कहते हैं ) किया, उसकी रवानगी से वो भली भांति परिचित रहा है लेकिन, आज जिससे नया साक्षात्कार हुआ वो था उनका पिछवाड़ा।मुंह न चिकोटिए मैं अगर ये शब्द कह रहा हूं तो इसके मायने भी आपको समझा सकता हूं तभी लिख रहा हूं, लालू से मेरा बचपन ऐसा जुड़ा है कि उनकी एक एक रवायत मुझे मुजवानी याद है। मैं एक छोटे से कस्बे जयनगर में पल बढ़ रहा था, उस वक्त मेरी खेलने खाने की ही उम्र थी। स्कूल से लौटते वक्त किसी ने कहा जगनाथ मिश्रा (उच्चारण पर न जाएं बच्चे थे) तो डाक बंगला पर बोलता था पांचो ठो आदमी नहीं जुटता ललूआ आया है खूब भीर है, चलेगा रे सुनने उसको ? साले सुनने जा रहा है कि उसका उरनखटोला देखने जा रहा है हैल