प्रेस कांफ्रेंस या चुनावी भोंपू...



चिदंबरम को कहते सुना “वरूण को टिकट देना शर्मनाक है,” लेकिन ये समझना काफी मुश्किल है कि सरकारी नुमाइंदे भी मीडिया का बखुबी इस्तेमाल कर रहे हैं...क्या चुनाव आयोग इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानता पत्रकार तो आज वो बन रहे हैं जिनको कहीं नौकरी नहीं मिलती वो पत्रकारिता करते हैं पर क्या चुनाव आयोग में ऐसे लोग बैठे हैं...पता नहीं पिछले कुछ दिनों से आपने भी गौर किया होगा कि कोई नौसीखिया राजनेता शिगुफा छोड़ देते हैं माफ कीजिएगा मैं संजय दत्त की बात नहीं कर रहा लेकिन फिर भी...मीडिया मूर्खों की तरह उनके पीछे पड़ जाता है और फिर वो मीडिया को अपना भोंपू समझ कर चुनाव प्रचार करते रह रहे हैं क्या बात है...हींग लगे ना फिटकरी रंग भी चोखा..रिसैशन का जमाना है पत्रकार बंधुओं को भी समझना चाहिए ये बात कि वो कितना मूर्ख बन रहे हैं एक कप चाय दालमोट के साथ खिला कर नेशनल प्रचार में जुटे हैं हमारे राजनेता लेकिन मीडिया के लोगों को ये बात समझ नहीं आ रही वो तो बस प्रेस कांफ्रेंस तब तक दिखाते रहेंगे जब तक प्रेस कांफ्रेंस में लालू के गवई अंदाज में कोई नेताजी ये न कह दें ए रिपोर्टर चाय नाश्ता का इंतजाम है खा पीकर जाना..चलो ये भी समझ में आता है कि टीवी पत्रकारों को तो नाली सड़क की खबरें नहीं दिखती वो तो अब इसके आदी हो गए हैं सो रियेलिटी शो चुनाव में कोई गूह मूंत भी बोल रहा है तो उसे 21 इंच पर दिखाते रहेंगे पर पता नहीं चुनाव आयोग को क्या हो गया है जो इन नेताओं को निर्देश जारी नहीं कर रहा...आज ही बीजेपी ने घोषणा पत्र जारी किया लगभग सभी चैनलों ने इस पर आधे घंटे तक दिखाया समझना मुश्किल है कि क्या ये उन प्रचार का ही हिस्सा है जो चैनलों पर आज कल पार्टियां दे रही हैं या फिर समाचार का हिस्सा खैर हमें क्या हमें तो बस चुनाव आयोग से आस है

टिप्पणियाँ

सही है ... आज पत्रकारिता सही होती तो शायद सब पर थोडा अंकुश लग सकता था ।

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