क्या कहता है जनाधार ?

तो क्या अब ये मान लिया जाए कि भारतीय वोटर जागरूक हो चुका है वो समझने लगा है कि किसे जीतना चाहिए और किसे हारना? दो तीन बातें तो 15वीं लोक सभा चुनाव के नतीजों से तो साफ हो चुका है।भारतीय वोटरों की मन:स्थिति, अब कोड़े भाषणों से परिवर्तित नहीं होने वाला,काम भी करके दिखाना होगा। मनमोहन तो भाषण नहीं करते और ना ही वो किसी लोक सभा सीट से आते हैं फिर भी जनाधार ने उनके नेतृत्व को पसंद किया।जिस तरह से 1991 के वित्तीय संकट से मनमोहन ने देश को उबारा था, वो ऋण भी भारतीय जनता ने इस बार उतार दिया।जनाधार ने उनपर भरोसा जताया है।
वोटरों को रिझाना अब आसान नहीं
इस बार के रिजल्ट ने उन नेताओं को ये संदेश दे दिया है कि सिर्फ दिल्ली में स्थित सुविधा-संपन्न बंगले में रहने से काम नहीं चलेगा। या फिर सिर्फ वोट के वक्त वोटरों को याद करना महंगा पड़ सकता है। आकर आपको वोटरों और अपनी जनता को याद करते रहना होगा अगर आपने ऐसा नहीं किया तो लाज़मी है कि आप अगली बार इन सुविधा-संपन्न बंगले के हकदार नहीं होंगे।सिर्फ कड़ी धूप में चुनाव के वक्त घूम लेने और चिकनी चुपड़ी बातें कर लेने से वोटरों को अपने पक्ष में कर लेना इतना आसान नहीं रहा।जिन सुविधाओं के बीच आप दिल्ली में रहते हैं कम से कम उतनी हम नहीं मांगते, लेकिन शहर में रहूं तो एक अदद बल्ब जले और पीने के लिए पानी तो दो।गांव में रहूं तो खेती के लिए खाद तो दो और नहीं दे सके तो फिर मतदाताओं के बीच ही रहना अगले पांच साल क्योंकि खाता तक नहीं खोल पाओगे।रामविलास पासवान की हार ने तो जनमत के इसी संदेश को पहुंचाया है।

क्या एक बार फिर से एक पार्टी संसद में निर्णय ले सकेगी?
जिस तरह से जनता ने कांग्रेस के पक्ष में वोट डाला है सभी मुद्दे को दरकिनार करके संसद तक भेजा है, उससे तो यही लगता है कि एक बार फिर से वोटरों का एकध्रूवीयकरण होता जा रहा है। सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस  और कोई नहीं ! 272 के जादूई आंकड़े से कुछ कदम दूर तो क्या ये मानने का विकल्प है हमारे पास कि अगर युवराज (राहुल हालांकि इस शब्द से परहेज करते हैं) अगले पांच सालों में भारतीय राजनीति के स्वरूप को बदल पाये (चुनाव परिणाम के तुरंत बाद यही राहुल ने यही कहा था) तो निश्चित है कि 2014 में कांग्रेस 206 से आगे बढ़कर हो, उसे न ममता कि जरूरत होगी, न माया की।
मनमोहन सिर्फ काम करते हैं...
पीएम इन वेटिंग ही रह गये लाल कृष्ण आडवाणी के तीक्ष्ण बाणों से तिलमिलाए मनमोहन ने बेशक चुनाव से थोड़ा पहले आपा खो दिया था लेकिन अब उन्हे ये तो अहसास हो ही गया होगा कि जनता उन्हे उनके काम से जानती है ना कि नाहक व्यगंय प्रति व्यगंय के कारण।आगे वो इसी काम को आगे बढ़ाएंगे। इसी उम्मीद के साथ वो दुबारा संसद में बहुमत दल के नेता रहें, इसलिए जनता की पहली पसंद कांग्रेस बनी।
बाहुबली नहीं सिर्फ विकास
मिडिया ने जिस तरह से प्रत्याशियों को पब्लिक के बीच लेकर आया उससे तो यही लगता है कि बाहुबलियों की हवा निकल गयी इस बार। अगर आपकी छवि नकारात्मक है तो फिर आप बीवी को चुनाव में उतारें या फिर भौजी को जीतकर संसद नहीं पहुंच पायेगी।लेकिन अगर आप बड़े गुंडे है लेकिन आपनी जनता के लिए हमदर्दी दिखाई है तो खुशी खुशी संसद पहुंचिये कौन रोकेगा। हमें आपके बाहुबल की जरूरत नहीं या हमें एक और सरकार नहीं चाहिए बस चाहिए तो पगडंडी की जगह सड़कें और बरसाती पानी के निकासी के लिए नाला क्योंकि आप तो रेड कारपेट पर चलते हैं और हमें कीचड़ों में ईंट डालकर गुजरना पड़ता है नेता जी।

आप नेता हैं या बंदर  या ब्लैकमेलर?
ज़रा उस शेर याद करिये हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामें गुलिश्ता क्या होगा।सोमनाथ दा को तो इतना गुस्सा आया कि उन्होने उन सभी नेता रुपी बंदरों को श्राप दे दिया कि आप अब यहां आ पाएंगे जनता देख रही है खैर जनता ने कितना देखा ये तो पंद्रहवी लोकसभा के संसद से पता चल ही जाएगा।लेकिन इससे दिगर एक और बात ममता ने तो कह दिया है कि मेरी पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता जिन्होने टाटा को उखारने में पसीने बहाए लाठियां खाई और सबसे अहम बात लेफ्ट को राइट का अंदाजा कराया उनको पांच मलाईदार मंत्री पद चाहिए।डीएमके को आठ।नहीं तो क्या ? अभी पता नहीं दो तीन दिन में पता चल ही जाएगा। और जो इस हालत में नहीं हैं वो बिना शर्त समर्थन देने को तैयार दिखे क्योंकि वो इस स्थिति में हैं ही नहीं।लालू की बात कर रहा हूं चार सीट लेकर पहुंचे ये कहने कि बिना शर्त समर्थन देंगे।इससे पहले एक रोचक खबर आई कि लालू के रेल मलाई आवास मेरा मतलब है उनके दिल्ली स्थित आवास पर जो रेल मंत्री का नेम प्लेट लगा था उसमें से रेल हट गया सिर्फ मंत्री शब्द दिख रहा था किसी चैनल ने इसे खूब भूनाया भी।यही सोचकर शायद लालू कैबिनेट मीटिंग में पहुंचे थे बाद में उन्होने कहा कि उनका अपमान हुआ।बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

इवीएम तो ठीक था न ?
अब जरा गौर कीजिए हमारे भूतपूर्व और भावी गृहमंत्री पी चिदंबरम हारते हारते जीत गए क्या सच में इवीएम में खराबी हो गई थी पुन: गणना की जरूरत पड़ी।हो सकता है क्या पता मशीन ही तो है लेकिन कहते हैं कि मशीन गलती नहीं करता गलती इंसानों से होती है।फिर पासवान अपनी हार का ठीकरा प्रशासन पर क्यों फोड़ रहे हैं ? लालू प्रसाद के लिए कई जुझारू मतदाता कहते हुए सुने गए कि लालू का सारण से हारना तय है लेकिन ये क्या हुआ वो तो वहीं से हार गए जहां से वोटर उनके जीतने की आस में थे।गंभीर विषय है या फिर सुभाष चंद्र बोस और संजय गांधी की मौत की तरह अबुझ पहेली। बस इतना जान लीजिए कि काम नहीं किया तो फिर दिल्ली के राजपथ होकर संसद नहीं जा सकेंगे।ये पब्लिक है सब जानती है।

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