जागो रे...
पिछले दिनों घर बदला तो स्वाभाविक है कि सबकुछ बदल सा जाता है। सो जरुरत महसूस हुई कि वोटर आई कार्ड पर जो पता है उसे चेंज करा लूं। इंटरनेट का जमाना है खंगालने लगा नेट। सबसे पहले दिल्ली चुनाव आयोग के साइट पर गया पता चला जिस काम के लिए मैं यहां गया हूं उसके लिए कुछ निर्देश मिल ही नहीं रहे। इस बीच टीवी पर भी खूब सारे ऐड लगातार मेरे बिजली बिल में इजाफा कर रहे थे। व्यस्त था अपना पता बदलवाने के लिए,ख्याल नहीं रहा रिमोर्ट से काम ले लूं । खैर लगा रहा अपने पते की तलाश में ऐसा लग रहा था कि इतनी तकलीफ तो इस नए घर को ढूंढने में नहीं हुई थी, जितना इस साइट पर पता बदलवाने के जानकारी के लिए हो रही है । बल्की नया घर ढूंढना ज्यादा आसान है ! कभी तो एहसास हो रहा था कि बस सरकारी काम का तरीका इलैक्ट्रॉनिक हो गया है, बाकि सब वैसे ही है जैसे एक सरकारी दफ्तर में होता था एक टेबल से दूसरे टेबल दौड़ते रहिए…काम आपका कहां बनेगा ये तो साक्षात परब्रह्म को भी नहीं पता ! सिन्हाजी के पास से वर्माजी के पास जाइये, वर्माजी के पास से सिंहजी के पास। और फिर इस जी से जी का जंजाल । किसके पास आप अपना पता चेंज करवा सकते हैं पता नहीं.....खैर एक फॉर्म दिखा- फॉर्म आठ। शक हुआ क्या यही वो फॉर्म है जिससे मैं अपना पता बदलवा सकता हूं पर किससे पूछूं ? समझ नहीं आया सोचा हेल्पलाइन घुमा लेता हूं घुमाया और पाया कि कोई फायदा नहीं सरकारी बाबुओं की तरह वो भी मौन पड़ जाता है कई जतन के बाद भी जब समस्या का समाधान न निकला तो फोन पटक कर दो चार भद्दी गालियां बिद बिदा कर वापस सिर लेपटॉप में घुसा लिया। इस बीच टीवी पर विज्ञापनों का सिलसिला थमा नहीं था, एक मोहन कपूर का सिरीयल ऑफिस ऑफिस देख रहा था लेकिन ये ऐड है कि खत्म ही नहीं हो रहा तभी आवाज सुना...जागो चाय पियो...लगा मेरे काम की चीज है...देखूं क्या कह रहे है तो कहते सुना वोट रजिस्टर के लिए साइट पर जाओ...हां जागोरे.कॉम पर जाओ मैं झट से लॉग औन कर बैठा जैसे ही अपना नाम उसपर डाला लगा जैसे इस साइट पर मेरे लिए ही कोई बैठा जवाब दे रहा है सब जगह मेरे नाम से मेरा संबोधन फिर जरूरी निर्देश और कुछ हद तक लगा कि शायद सब यहीं से हो जाएगा पर एक समय आया जब फॉर्म के साथ निर्देश मिला कि आप फलाने जगह सरकारी दफ्तर जाएं और वहां पर इस फॉर्म को जमा कर दें खैर, एक प्राइवेट साइट पर इतना कुछ मालूम चला, सरकारी पर तो वो भी पता नहीं चल पाया कि आखिर कौन से फॉर्म को भरने से मेरे समस्या का समाधान हो जाएगा इसपर कम से कम इतना तो पता लगा.....चलिए कोई तो है जो आपकी आवाज सुन रहा है देखता हूं चुनाव से पहले पता चेंज करा पाता हूं या नहीं।
टिप्पणियाँ
लगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
All the best
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लिए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
http://www.swapnil98.blogspot.com
रेखा चित्र एंव आर्ट के लिए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com
zyada fark nahiN! Milta-julta anubhav.
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/)
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
ब्लोग्स के साथियों मे आपका ढेर स्वागत है
कोटा मे हुये तीन दिवसीय नाट्य समारोह का संचालन करते हुये, शहर मे एक ओडीटोरियम की माग के संदर्भ मे कुछ एक मुक्तक लिखने मे आये - देखियेगा
ये नाटक ये रंगकर्म तो ,
केवल एक बहाना है
हम लोगों का असली मकसद
सूरज नया उगाना है
कभी मुस्कान चेहरे से हमारे खो नहीं सकती
किसी भी हाल मे आंखें हमारी रो नही सकती
हमारे हाथ मे होंगी हमारी मंजिलें क्योंकि
कभी दमदार कोशिश बेनतीजा हो नही सकती
दुनियाभर के अंधियारे पे , सूरज से छा जाते हम
नील गगन के चांद सितारे , धरती पर ले आते हम
अंगारों पे नाचे तब तो , सारी दुनिया थिरक उठी
सोचो ठीक जगह मिलती तो ,क्या करके दिखलाते हम
दिखाने के लिये थोडी दिखावट , नाटको में है
चलो माना कि थोडी सी बनावट , नाटकों मे है
हकीकत में हकीकत है कहां पर आज दुनिया मे
हकीकत से ज्यादा तो हकीकत , नाटको मे है
ये जमाने को हंसाने के लिये हैं
ये खुशी दिल मे बसाने के लिये हैं
ये मुखौटे , सच छुपाने को नहीं हैं
ये हकीकत को बताने के लिये हैं
डा. उदय ’मणि’ कौशिक
http://mainsamayhun.blogspot.com
सबसे पहले तो आपकी रचना के लिए ढेरो बधाई
ब्लोग्स के नए साथियो में आपका बहुत बहुत स्वागत
चलिए एक मुक्तक से अपना परिचय करा रहा हूँ
चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को
सादर
डा उदय ’मणि’ कौशिक
http://mainsamayhun.blogspot.com
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति